Friday, May 20, 2011

मै तुझसे कुछ कहेना चाहता हूं

मै तुझसे कुछ कहेना चाहता हूं

मै तुझसे कुछ कहेना चाहता हूं
पर डर लगता है और चुप रहेता हूं ||धृ||

कितने दिन गुजरे कितनी गुजरी रातें
याद आते है वो मिठे पल वो मिठी बातें
कुछ अरसों से उम्मीद लिए बैठा हूं ||१||

क्या भुली हो तुम सागर की लहेरें
रेत मे बैठे थे हम डालके बाहोमें बाहे
अब अकेलेही मेरे पैर पानी मे भिगोता हूं ||२||

माना के दिल एक शिशा होता है
कभी ना कभी वह टुट ही जाता है
वही टुटे शिशे में तेरी तस्वीर लिए बैठा हूं ||३||

- पाषाणभेद
२१/०५/२०११

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