हवा मे पल्लू लहराये, वो थोडी शरमाये
राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||
कितनी कातील अदा है उसकी
छुरी बिनाही मै कट जाऊं |
मर तो जाता मै, और क्या करता
कैसे तकलीफ मै सहूं?
वो तो आती जैसे बिन बादल बिजली मुझपर गिर जाए |
राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||
कितने पागल हो चूके कितने तो बरबाद
रोजगार कितनो का छुटा न करो गिनती बारबार |
एक मै था बचा हुवा जो अब हुवा लाचार
क्या करू मै की तुम हम मिल पायें |
राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||
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