Sunday, October 31, 2021

राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए

हवा मे पल्लू लहराये, वो थोडी शरमाये

राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||


कितनी कातील अदा है उसकी

छुरी बिनाही मै कट जाऊं |

मर तो जाता मै, और क्या करता

कैसे तकलीफ मै सहूं?

वो तो आती जैसे बिन बादल बिजली मुझपर गिर जाए |

राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||


कितने पागल हो चूके कितने तो बरबाद

रोजगार कितनो का छुटा न करो गिनती बारबार |

एक मै था बचा हुवा जो अब हुवा लाचार

क्या करू मै की तुम हम मिल पायें |

राम दुहायी, यह दुरी मुझसे अब सहा नही जाए ||

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